हरियाणा चुनाव में भूपेंद्र सिंह हुड्डा ना होते तो कांग्रेस का क्या होता?

हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने ये कहते हुए अपने किसी शुभचिंतक का फ़ोन काटा और कुर्सी से उठ खड़े हुए.

पास ही रखी एक बोतल से उन्होंने दो घूंट पानी पिया और बालकनी में जाकर अपने समर्थकों का अभिवादन स्वीकार किया.

ये दोपहर क़रीब ढाई बजे का समय था. अधिकतर सीटों पर दस से अधिक राउंड की काउंटिंग हो चुकी थी.

72 वर्षीय हुड्डा रोहतक के मॉडल टाउन स्थित अपने 'कैंप ऑफ़िस' की पहली मंज़िल पर बैठे न्यूज़ चैनल देख रहे थे. कांच की बड़ी-बड़ी खिड़कियों वाले उनके कमरे में नारेबाज़ी और ढोल बजने का शोर सुनाई दे रहा था.

मीडिया के कुछ लोग उन्हें घेरे खड़े थे. लेकिन उनकी निगाहें टीवी स्क्रीन पर घट-बढ़ रहे सीटों के आंकड़ों पर टिकी थीं.

मतगणना के दौरान कुछ देर के लिए ऐसा समय आया था जब बीजेपी और कांग्रेस, दोनों पार्टियाँ 35-35 के आंकड़े पर थीं.

पर कुछ ही देर में कांग्रेस जितनी सीटों पर पीछे हटी, बीजेपी उनसे कुछ अतिरिक्त सीटों पर बढ़त हासिल कर 41 पर पहुँच गई.

इसके बाद हुड्डा ने जनादेश का हवाला देते हुए अभय और दुष्यंत चौटाला समेत अन्य निर्दलीयों से प्रदेश में बीजेपी के ख़िलाफ़ सरकार बनाने का आह्वान भी किया, पर इतने सारे और नाना प्रकार के लोगों को एक साथ लाना कितना मुश्किल काम था, ये वो जान रहे थे.

जिस समय हुड्डा अपने दफ़्तर से दिल्ली निकलने के लिए तैयार हो रहे थे, तब बीबीसी ने उनसे चुनाव प्रचार में कांग्रेस पार्टी की कमियों और राहुल गांधी के नेतृत्व के बारे में सवाल पूछा था जिसका उन्होंने एक ही जवाब दिया- "सोनिया गांधी मेरी नेता हैं. अब आगे की बात उन्हीं से होगी."

हरियाणा में कांग्रेस पार्टी ने विधानसभा चुनाव-2019 किस रवैये के साथ लड़ा, उसे समझाने के लिए सूबे के कई राजनीतिक विश्लेषक भूपेंद्र सिंह हुड्डा के इन दो बयानों का ही संदर्भ देते हैं.

भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने चुनाव हारने के बाद कैंपेनिंग के लिए कम वक़्त मिलने की जो दलील दी, वो कितनी जायज़ है? ये समझने के लिए हमने हरियाणा के वरिष्ठ पत्रकार हेमंत अत्री से बात की.

हेमंत ने बताया, "4 सितंबर को हुड्डा कांग्रेस विधायक दल के नेता और प्रदेश चुनाव समिति के चेयरमैन नियुक्त किए गए थे और 21 अक्तूबर 2019 को राज्य में मतदान हुआ. ये 47 दिन का समय उनके पास था जिनमें से क़रीब 30 दिन पार्टी की क़ागज़ी कार्यवाही में बीत गए. पहले स्क्रीनिंग कमेटी बनी, उसके बाद कॉर्डिनेशन कमेटी, फिर मेनिफ़ेस्टो कमेटी और उसी दौरान उम्मीदवारों के टिकटों पर फ़ैसले हुए. तो कुल मिलाकर ग्राउंड पर चुनावी कैंपेनिंग के लिए हुड्डा को तीन सप्ताह से कम समय मिला."

हेमंत अत्री इस बार के हरियाणा चुनाव में '4 सितंबर की अहमियत' का ज़िक्र करते हुए कहते हैं कि 'ये चुनाव हुड्डा की एंट्री से पहले और उसके बाद, दो हिस्सों में बाँटकर देखा जा सकता है.'

उन्होंने बताया, "बीजेपी ने 'अबकी बार, 75 पार' का जो नारा दिया था उसके मूल में ही हुड्डा का मुख्यधारा से बाहर होना था. 4 सितंबर को हुड्डा अगर अशोक तंवर की जगह ना लेते तो बीजेपी उस नारे को सच साबित करके दिखाती. लोकसभा चुनाव-2019 में हरियाणा के 10 संसदीय क्षेत्रों के 90 हल्कों में से 79 पर बीजेपी को बढ़त थी."

"इसी का आंकलन बीजेपी ने किया था और हुड्डा के मैदान में आने से पहले बीजेपी विधानसभा चुनाव को हल्के में ले रही थी. राजनीतिक विश्लेषक भी चुनाव को एकतरफा मान रहे थे. चुनाव बोरिंग लग रहा था. लेकिन इलेक्शन के अंतिम तीन सप्ताह में हुड्डा ने खेल को पूरी तरह बदल दिया. इस चुनाव में हुड्डा की वजह से कांग्रेस अकेली पार्टी है जिसकी सीटें पहले से बढ़ी हैं. चौटाला परिवार (इनेलो+जेजेपी) 19 से 11 पर आ गया, बीजेपी 47 से 40 पर और कांग्रेस 15 से 31 पर. यानी कांग्रेस ने बीजेपी और चौटालाओं, दोनों को चोट की."

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