सदन में अपने ही विदेश मंत्री का 4 बार गलत नाम ले बैठे राजनाथ

लोकसभा में बुधवार को एक चौंकाने वाला वाकया देखने-सुनने में आया. सदन में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के कश्मीर पर विवादित दावे को लेकर बहस चल रही थी. रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह सरकार का पक्ष रखने खड़े हुए लेकिन वे अपने ही मंत्री का नाम गलत ले बैठे. मामला इसलिए गंभीर हो गया क्योंकि अनजाने या भूलवश कोई एक या दो बार गलत नाम लेगा लेकिन राजनाथ सिंह ने चार बार गलत नाम दोहराया. यह नाम था विदेश मंत्री एस. जयशंकर का. राजनाथ सिंह चार बार जयशंकर प्रसाद कहते सुने गए.

कश्मीर पर डोनाल्ड ट्रंप के बवाल मचाने वाले बयान पर लोकसभा में जबरदस्त हंगामा चल रहा था. विपक्ष के नेता सदन में खड़े होकर सरकार से जवाब मांग रहे थे. कांग्रेस दूसरे दिन भी पीएम मोदी की घेराबंदी में लगी थी. सीधे-सीधे बयान देने की मांग कर रही थी.

इस मांग पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सदन में तो नहीं आए लेकिन रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने सरकार का पक्ष रखा. बयान में उन्होंने मजबूती से ट्रंप के दावे से इनकार किया. राजनाथ सिंह ने साफ-साफ कहा कि ट्रंप से कश्मीर पर प्रधानमंत्री की कोई बात नहीं हुई लेकिन बयान देने के दौरान रक्षा मंत्री से जुबानी चूक हो गई.

देश के रक्षा मंत्री अपने ही विदेश मंत्री के संबोधन में गलती कर गए. राजनाथ सिंह एस. जयशंकर की जगह जयशंकर प्रसाद बोल गए. जब रक्षा मंत्री नाम का गलत संबोधन कर रहे थे तो विदेश मंत्री एस जयशंकर उनके बगल में ही बैठे थे. ऐसे में ये कहना भी सही नहीं होगा कि उन्हें विदेश मंत्री का नाम नहीं मालूम रहा होगा लेकिन कई बार अनजाने में भी गलती हो जाती है और जब सार्वजनिक जीवन में ऐसा हो तो ये गलतियां सार्वजनिक भी हो जाती हैं.

यूं तो इनर लाइन परमिट रूल पहले जम्मू-कश्मीर में भी लागू था, मगर श्यामा प्रसाद मुखर्जी के आंदोलन के बाद वहां परमिट सिस्टम खत्म हो गया. लेकिन, नागालैंड में यह नियम आज भी जारी है. अब यह मामला राष्ट्रीय स्तर पर बहस का विषय बनने लगा है.

हाल ही में बीजेपी नेता अश्निनी उपाध्याय इस मामले को सुप्रीम कोर्ट लेकर पहुंचे तो वहीं बीते 23 जुलाई को दो सांसदों ने भी लोकसभा में इनर लाइन परमिट सिस्टम के मुद्दे को उठाया. जिस पर सरकार ने कहा है कि भारतीय नागरिकों को  अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम और दीमापुर को छोड़कर नगालैंड में यात्रा के लिए इनर लाइन परमिट की जरूरत होती है. दीमापुर के लिए इनर लाइन परमिट लागू करने के लिए राज्य सरकार के प्रस्ताव पर अभी विचार-विमर्श चल रहा है.

आंतरिक वीजा जैसा होता है इनर लाइन परमिट

देश में इस वक्त सिर्फ नागालैंड में ही इनर लाइन परमिट सिस्टम लागू है. बंगाल ईस्टर्न फ्रंटियर रेग्यूलेशन्स, 1873 के तहत यह व्यवस्था एक सीमित अवधि के लिए किसी संरक्षित, प्रतिबंधित क्षेत्र में दाखिल होने के लिए अनुमति देता है. नौकरी या फिर पर्यटन के लिए पहुंचने वालों को अनुमति लेनी जरूरी है. बताया जाता है कि गुलामी के दौर में ब्रिटिश सरकार ने इनर लाइन परमिट सिस्टम की शुरुआत की थी. तब नागालैंड क्षेत्र में जड़ी-बूटियों और प्राकृतिक औषधियों का प्रचुर भंडार था. जिसे ब्रिटेन भेजा जाता था. औषधियों पर दूसरों की नजर न पड़े, इसके लिए ब्रिटिश शासन ने नागालैंड के हिस्से में इनर लाइन परमिट की शुरुआत की थी. ताकि इस इलाके का संपर्क बाहरी क्षेत्रों से न हो सके.

आजादी के बाद भी सरकार ने इनर लाइन परमिट को जारी रखा. इसके पीछे तर्क था कि नागा आदिवासियों का रहन-सहन, कला संस्कृति, बोलचाल औरों से अलग है. ऐसे में इनके संरक्षण के लिए इनर लाइन परमिट जरूरी है. ताकि बाहरी लोग यहां रहकर उनकी संस्कृति प्रभावित न कर सकें

Comments

Popular Posts